भारत के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, श्री डीवाई चंद्रचूड़, जिन्होंने 10 नवंबर, 2024 को अपनी न्यायिक सेवा से रिटायरमेंट लिया, अब लगभग 15 दिन हो चुके हैं। रिटायरमेंट के बाद उनके अनुभवों पर आधारित उनके विचार, न केवल उनके करियर की गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि एक न्यायाधीश के जीवन में काम और व्यक्तिगत संतुलन की कैसी जटिलताएँ होती हैं।
न्यायिक जीवन: एक कठोर दिनचर्या
रिटायरमेंट के बाद अपने पहले कुछ दिनों को लेकर जब डीवाई चंद्रचूड़ से सवाल पूछा गया, तो उन्होंने स्पष्ट किया कि न्यायिक जीवन में 34 वर्षों की सेवा के बाद अचानक जीवन में आए इस बदलाव को पचा पाना आसान नहीं था। उन्होंने बताया कि उनका दिन हमेशा एक ही तरह से चलता था – सुबह उठकर केस फाइलें पढ़ना, कोर्ट में सुनवाई करना, शाम को जजमेंट डिक्टेट करना और फिर रात को अगले दिन की फाइलें तैयार करना। यह दिनचर्या उनके जीवन का अहम हिस्सा बन चुकी थी।
"साढ़े आठ साल की आदत थी और उससे पहले 24 साल तक मैं जज रहा हूं और इसके अलावा मेरी दुनिया में कुछ और काम नहीं था," चंद्रचूड़ ने कहा। यह एक लंबे समय तक लगातार काम करने का दृषटिकोन था, जिसमें न्यायिक जिम्मेदारियां और अदालत में होने वाली प्रक्रिया ही उनके जीवन का केंद्रीय बिंदु रही।
रिटायरमेंट: एक नए जीवन की शुरुआत
चंद्रचूड़ ने रिटायरमेंट के बाद जीवन में आए बदलाव को स्वीकार किया और कहा कि यह एक गहरी चुनौती है। अचानक इस बदलाव को महसूस करते हुए, उन्होंने कहा, "इंसान होने के नाते मैं कह सकता हूं कि यह आसान नहीं है कि अचानक जिंदगी में इस तरह का बदलाव आना।" यह वाक्य न केवल उनके व्यक्तिगत अनुभव को व्यक्त करता है, बल्कि यह दर्शाता है कि 24 साल तक एक विशेष पेशे में रहने के बाद, उसकी आदतों और दिनचर्या को छोड़ना किसी भी व्यक्ति के लिए आसान नहीं होता।
जीवन के खोए हुए पहलू
चंद्रचूड़ ने यह भी साझा किया कि इतने लंबे समय तक न्यायपालिका में काम करने के दौरान उन्होंने अपने परिवार के साथ कई निजी क्षणों को खो दिया। "मैं 24 सालों में अपने परिवार के साथ लंच नहीं कर पाया और कई बार डिनर के वक्त भी मैं अपने ऑफिस में ही रहता था," उन्होंने दुःख के साथ कहा। यह एक सच्चाई है कि न्यायिक जीवन की कठोरता और दिन-रात की जिम्मेदारियों के चलते, कई बार व्यक्तिगत जीवन पीछे छूट जाता है।
उनके लिए रिटायरमेंट के बाद यह समय उन खोई हुई चीजों को फिर से पाने का है। उन्होंने यह भी कहा कि अब वह उन चीजों को फिर से करने की कोशिश कर रहे हैं, जो वह पहले नहीं कर पाए थे। यह जीवन का एक बहुत बड़ा बदलाव है, जिसमें एक व्यक्ति अपने व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन को फिर से नए सिरे से जीने का प्रयास करता है।
पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ का अनुभव हमें यह समझने में मदद करता है कि न्यायिक जीवन केवल कागजी कार्यवाही और कानूनी दायित्वों तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसा पेशा है जो व्यक्ति के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। रिटायरमेंट के बाद, चंद्रचूड़ ने यह महसूस किया कि उनके जीवन में बहुत कुछ खो गया, लेकिन अब उनके पास उन चीजों को फिर से जीने का अवसर है। उनका यह आत्ममंथन न केवल एक न्यायाधीश के जीवन का व्याख्यान करता है, बल्कि यह हमें भी यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपने पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन के बीच एक संतुलन बना पा रहे हैं।
रिटायरमेंट के बाद के ये 15 दिन चंद्रचूड़ के लिए आत्ममंथन, विचार और पुनर्निर्माण के समय रहे हैं, जो यह दर्शाते हैं कि जीवन में कुछ खोने के बाद उसे फिर से पाने की एक नई राह होती है।

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